🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩
※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※
🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹❄ *श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य* ❄🌹
🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :
( गत ब्लाग से आगे )
🌟 श्रीगोपदेवी-लीला :
श्रीकृष्ण -
(पद)
धीरज रहत नहिं प्रेम-मग पग धरि।
आदि अंत जाकौ न बतायौ कोउ,
थकित रहत मन-बुधि बिधि-हर-हरि।।
बार-बार मैं हूँ बिचार करि देखूँ नित,
भूलि जात गेहु, नीर आवत दृगन भरि।
प्रेमी प्रेम पात्र सूर गायौ है अभेद भेद,
डरत न काहू सौं सेवक ज्यौं नरहरि।।
(पद)
अति ही कठिन है निगम पथ चलिबौ।
कठिन सौं कठिन जगत रीत देखियत,
गुरुजन-डर नित हिय में उछलिबौ।।
प्रेम पंथ ग्रंथन में गायौ है अनेक भाँति,
आवत न अंत निज पिय कौ मचलिबौ।
प्रीत जो सनातन, ताहि जानत ना ओछौ मन,
सूर कहा जानै ताहि बिना नैन मिलिबौ।।
श्रीजी- सखी, कहा ये ही हैं स्यामसुंदर?
सखी- हाँ, प्यारी! ये ही हैं। अब नैन भरि देखि लेऔ!
श्रीजी-
(पद)
कृष्ण मन-मोहन नैन बिसाल।
बंक मनोहर चितवनि चितवत, बन ते आवत लाल।।
सुंदर अमल कमल-दल सोहत मुसिकन मंद रसाल।
हरिबल्लभ किमि रूप कहौं सखि, मोहन मदन गुपाल।।
पद (रांग-नूर सारंग, तीन ताल)
अँखियन याही टेव परी।
कहा करूँ बारिज मुख ऊपर लागत ज्यौं भँवरी।।
हरखि-हरखि प्रीतम मुख निरखत, रहत न एक घरी।
ज्यौं-ज्यौं राखत जतनन करि-करि, त्यौं-त्यौं होत खरी।।
गड़ि मरि रहीं रूप-जलनिधि में प्रेम-पियूष भरी।
सूरदास गिरिधर नग परसत लूटत निधि सगरी।।
( शेष आगे के ब्लाग में )
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹: कृष्णा : श्री राधा प्रेमी : 🌹
https://plus.google.com/113265611816933398824
मोबाइल नं.: 9009290042
🌹 एक बार प्रेम से बोलिए ...
🙌🏻 जय जय श्री राधे .....🙌🏻
🌹 प्यारी श्री राधे ....... 🌹
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🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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(पद)
धीरज रहत नहिं प्रेम-मग पग धरि।
आदि अंत जाकौ न बतायौ कोउ,
थकित रहत मन-बुधि बिधि-हर-हरि।।
बार-बार मैं हूँ बिचार करि देखूँ नित,
भूलि जात गेहु, नीर आवत दृगन भरि।
प्रेमी प्रेम पात्र सूर गायौ है अभेद भेद,
डरत न काहू सौं सेवक ज्यौं नरहरि।।
(पद)
अति ही कठिन है निगम पथ चलिबौ।
कठिन सौं कठिन जगत रीत देखियत,
गुरुजन-डर नित हिय में उछलिबौ।।
प्रेम पंथ ग्रंथन में गायौ है अनेक भाँति,
आवत न अंत निज पिय कौ मचलिबौ।
प्रीत जो सनातन, ताहि जानत ना ओछौ मन,
सूर कहा जानै ताहि बिना नैन मिलिबौ।।
श्रीजी- सखी, कहा ये ही हैं स्यामसुंदर?
सखी- हाँ, प्यारी! ये ही हैं। अब नैन भरि देखि लेऔ!
श्रीजी-
(पद)
कृष्ण मन-मोहन नैन बिसाल।
बंक मनोहर चितवनि चितवत, बन ते आवत लाल।।
सुंदर अमल कमल-दल सोहत मुसिकन मंद रसाल।
हरिबल्लभ किमि रूप कहौं सखि, मोहन मदन गुपाल।।
पद (रांग-नूर सारंग, तीन ताल)
अँखियन याही टेव परी।
कहा करूँ बारिज मुख ऊपर लागत ज्यौं भँवरी।।
हरखि-हरखि प्रीतम मुख निरखत, रहत न एक घरी।
ज्यौं-ज्यौं राखत जतनन करि-करि, त्यौं-त्यौं होत खरी।।
गड़ि मरि रहीं रूप-जलनिधि में प्रेम-पियूष भरी।
सूरदास गिरिधर नग परसत लूटत निधि सगरी।।
( शेष आगे के ब्लाग में )
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