गुरुवार, 15 सितंबर 2016

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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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 🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹

🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :

( गत ब्लाग से आगे )

🌹 श्रीकृष्णप्रवचनगोपी-प्रेम :

 (दोहा)

तीन लोक चौदह भुवन प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं।
पर- जगमग ह्वै रह्यौ रूप सौं श्रीबृंदाबन माँहि ।।
और ढूँढ़ि फिरैं त्रैलोक जो, मिलत कहूँ हरि नाहिं।
पर- प्रेमरूप दोउ एकरस बसत निकुंजन माँहि।।

हम दोऊ स्वरूप प्रेम-निकुंज के देवता हैं, और ये गोपी हमारी पुजारिन है, प्रेम की आद्याचार्य हैं। प्रेम-संप्रदाय गोपिन ते ही चल्यौ है, प्रेम की पद्धति इननें ही चलाई, और प्रेम कौ स्वरूप इननें हीं जगत कूँ दरसायौ है। यदि ये गोपी नहीं होतीं, तौ, प्रेम-शब्द ग्रंथन में हीं रहि जातौ। श्रीनारदजी ‘यथा व्रजगोपिकानाम्’ कहि कैं अपने ग्रंथ ‘भक्तिसूत्र’ में कौन कौ दृष्टान्त देते। और जो गोपी न होतीं तौ स्वयं मेरौ जो बाक्य- ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरण ब्रज’ है, याकौ स्वरूप प्रत्यक्ष करि कौन दरसावतौ। अजी, गोपी न होतीं तौ मेरी माखन-चोरी-लीला, पनघट-लीला, दान-लीला, मान-लीला, होरी-लीला, बंसी-लीला और रास-लीला नहीं होतीं। रसिकजन लुटि जाते, और स्वयं मैं हूँ पूरे ते आधौ रहि जातौ-पूर्णतम् स्वरूप ते न्यूनतम रहि जातौ! और यदि गोपी न होतीं तौ भक्ति जुबती ते फेर वृद्धा है जाती। श्रीनारदजी नें भक्ति सौं कही ही-

वृन्दावनस्य संयोगात्पुनस्त्वं तरुणी नवा।
धन्यं वृन्दावनं तेन भक्तिर्नृत्यति यत्र च।।

अर्थ- हे भक्तिदेवी! तुम बृंदाबन के संयोग ते फिर जुबती है गई हैं; याते ते बृन्दाबन धन्य है, जहाँ भक्ति नृत्य करै है। यह भक्ति गोपी-कृष्ण-लीला कूँ गाय-गाय कैं नृत्य करै है। यदि गोपी न होतीं तो मैं कौन के संग लीला करतौ, और भक्ति कहा गाय कैं नृत्य करती, बिचारी रोय-रोय कैं आप ही बूढ़ी है जाती। या प्रकार ये ब्रजगोपी मेरी ब्रज-लीला की आधार-स्वरूपा हैं, तथा स्वयं मेरी प्राण-जीवन-स्वरूपा हैं। याही सौं प्रेम-मंदिर में इनकौ स्थान सर्वोपरि है- गोपी प्रेम की धुजा हैं।

(दोहा)

जदपि जसोदा नंद अरु ग्वालबाल सब धन्य।
पै या जग में प्रेम की गोपी भईं अनन्य।।
भक्त जगत में बहुत हैं, तिन कौ नाहिं प्रमान।
हौं गोपिन के हिय बसौं, गोपी मेरे प्रान।।

( शेष आगे के ब्लाग में )

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