शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩

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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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 🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹

🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :
🌹 श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला :

( गत ब्लाग से आगे )

पद (राग पीलू, तीन ताल)

कब की गई न्हान तू जमुना, यह कहि-कहि रिस पावै ।
राधा कौ तुम संग करत हौ, ब्रज उपहास उड़ावै ।।
वे हैं बड़े महर की बेटी, तो ऐसी कहि आवै ।।
सुनौ सूर यह उनही भावै, यह कहि-कहि जो डरावै ।।
(श्रीजी पर्दा की ओर सौं सुनि, घबराय कान बंद करैं; गागर लैकैं जमुना जानौं)

(श्रीकृष्ण अकेले जमुना पै बैठे गावैं)

श्रीकृष्ण-

(कवित्त)

फूलि रही लता, द्रुम-डारी हरी झूमि रहीं,
चहुँ हरियाली सौं लुभात अति जीकौ है।
दादुर-पुकार, झनकार सुनि झींगुर की,
मोरन कौ नृत्य सब्द कोयल अमी कौ है ।।
बादर की गरज औ लरज नीकी दामिनि की,
पवन सुगंध मानों वार बरछी कौ है ।
गहबर बन नीकौ, बास खोर साँकरी कौ,
लगे कुँवर नहिं जीकौ आज प्रिया बिना फीकौ है।

(श्रीजी जल भरिबे पधारैं)

समाजी-

पद (राग खंभावती, तीन ताल)

कृष्ण दरस सौं अटकी ग्वालिन ।
बार-बार पनघट पै आवत, सिर जमुना जल-मटकी ।।
मन-मोहन कौ रूप-सुधा-निधि पिवत प्रेम-रस गटकी ।
कृष्नदास धनि-धन्य राधिका, लोक-लाज सब पटकी ।।

पद (राग देश, तीन ताल)

चितवनि रोकें हूँ न रही ।
चितवनि रोकें हूँ न रही।
स्याम-सुंदर सिंधु सनमुख सरिता उमगि बही ।।
प्रेम सलिल प्रबाह भँवरनि मिति न कबहुँ लही ।
लोल लहर कटाच्छ, घूँघट-पट करार ढही ।।
थके पलकन नाव धीरज परत नाँहि गही ।
मिली सूर समुद्र स्यामहिं फिरि न उलटि बही॥

( शेष आगे के ब्लाग में )

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 🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
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