गुरुवार, 4 अगस्त 2016

🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩

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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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 🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹

🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :
🌹श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला :

( गत ब्लाग से आगे )

सखी- वे तौ नंद के लाल श्रीकृष्ण हैं, उनहीं सौं कन्हैयाँ कहैं हैं।
श्रीजी- हाँ, कन्हैयाँ- नामहू बौहौत प्यारौ लगै है।

(पद)
कैसे हैं नँद-सुवन कन्हाई?
देखे नहीं नैन भरि कबहूँ, ब्रज में रहत सदाई ।।
सकुचत हौं इक बात कहति मैं, तुम सौं दऊँ जनाई ।
कैसैंहुँ मोय दिखावौ उन कूँ, यह मेरे मन आई ।।
अतिही सुंदर कहियत हैं वे, मोकूँ देहु दिखाई ।
सूर सखी राधा की बानी सुनत सबै भरि आई ।।

सखी-

(पद)
सुनि राधे तोहि स्याम मिलैं हैं।
जहाँ-तहाँ ब्रज-गलिन फिरत हैं, जबही वे यह मारग ऐहैं।।
जब हम कहुँ उन कूँ देखैंगी, तबही तोहि बुलैहैं।
उनहू कैं लालसा बहुत है, तोहि देखि सुख पैहैं।।
दरसन ते धीरज जब रहिहै, तब ही तोहि पतैहैं।
सूरदास प्रभु नवल कान्हवर पीतांबर फहरैंहें ।।

श्रीजी- (उठिकैं दौरनौ) चलि, उनके पास चलें; वे कहाँ मिलैंगे?
सखी- (पकरि कैं बैठावै) प्यारी! धीरज धरौ ।
(स्यामसुंदर कौ चित्र श्रीजी कूँ दिखानौ)

पद -(राग-तिलक कामोद, ताल-झूमरा)
देख री, नवल नंद किसोर ।
लकुट सौं लपटाय ठाड़े जुबति जन-मन-चोर ।।
चारू लोचन हँसि बिलोकनि देखि कैं चित्त भोर ।
मोहिनी मोहन लगावत लटकि मुकुट-झकोर ।।
स्रवन धुनि सुनि नाद मोहत करत हिरदैं कोर ।
सूर अंग त्रिभंग-सुंदर छबि निरखि तृन तोर ।।

समाजी-

(दोहा)
चित्र देखि भइ चित्र सम, भरि आए जल नैन ।
अंचल सौं पोंछत कुँवरि, बोले जात न बैन ।।

सखी- प्यारी! चित्र देख लियौ, अब याकूँ धरि आऊँ?

( शेष आगे के ब्लाग में )

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 🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
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