🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩
※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※
🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹
🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :
🌹 श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला :
( गत ब्लाग से आगे )
यशोदा- तौ सखीयौ, तुमहीं लै आऔ।
सखी- नहीं, नहीं हम स्याम-कलंकिनी हैं।
यशोदा- अरी, एक जटिला नाम की वृद्धा जावट में रहै हैं, वाकूँ बुलाऔ।
(जटिला कूँ बुलाय सब बात कहनी)
जटिला- मैं अपनी सती-बल सौं कठिन सौं-कठिन काम करि सकूँ हूँ अबहीं जाऊँ।
समाजी-
(चौपाई)
जबही पाँव सेतु पै डार्यौ, सो तौ बल नैंकहुँ नहिं धार्यौ ।।
टूटि गयौ सो पाँव धरत ही, सो जमुना में जात बहत ही ।।
ताही छिनु जो भई नभ बानी, भरि न सकौ तुम जमुना पानी ।।
हौ तुम सती सो ब्रज नें चीन्ही, तुम राधा की निंदा कीन्ही ।।
तुम्हरौ सब बल घटि गयौ तासौं, सेतु न पार करि सकौ यासौं।।
वैद्य- मैया, मैं और उपाय बताऊँ हूँ ब्रज में एक परम सती हैं, उनकी चरन-रज सौं बिस्व पावन होयगौ। उनहीं कूँ बुलाऔ। उनकौ नाम है श्रीराधा वे वृषभानुजी की पुत्री हैं।
सखी- (बुलाय कै लावै, उन सौं सब बात कहै, श्रीजी कलश लैकें जमुनाजी पै जायँ)
समाजी-
पद (राग धूरिया मलार, तीन ताल)
आवत ही घट लियौ उठाई।
प्रथम प्रनाम सेतु कौं कीनौ, तापर आप चढ़ी हरषाई ।।
तीन बार जमुना पै इत-उत, बीच धार जल घट भरि लाई ।
जै हो जै हो सती राधिका! ब्रजबासिन सब धुनी लगाई ।।
बरषत सुमन चहूँ दिसि नभ सौं, हरषि सुरन दुंदुभी बजाई।
पुनि कह्यौ वैद, देवि! अपने कर नैनन सौं जल देहु छुबाई ।।
देखत नंद घरनि मन हुलसी, हरखि उठे तब कुँवर कन्हाई ।
तब जुबती अपराध छमायौ, कह्यौ कोउ राधा सम नाहीं।
पद (राग बहार, तीन ताल)
धन्य, धन्य, बृषभानु कुमारी !
धनि माता, धनि पिता, धन्य ब्रज, धनि तो सी उपजाई प्यारी ।।
धन्य दिवस, धनि निसा तबहि की, धन्य घरी, धनि जाम ।
धन्य कान्ह तैरौ बड़भागी, धनि बस कीने स्याम ।
धनि मति, धनि गति, धनि तेरौ हित, धन्य भक्ति, धनि भाव ।
सूर स्याम पति धन्य, नारि तू धनि, धनि एक सुभाव ।।
।। श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला संपूर्ण ।।
( शेष आगे के ब्लाग में )
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
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🌹: कृष्णा : श्री राधा प्रेमी : 🌹
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सखी- नहीं, नहीं हम स्याम-कलंकिनी हैं।
यशोदा- अरी, एक जटिला नाम की वृद्धा जावट में रहै हैं, वाकूँ बुलाऔ।
(जटिला कूँ बुलाय सब बात कहनी)
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(चौपाई)
जबही पाँव सेतु पै डार्यौ, सो तौ बल नैंकहुँ नहिं धार्यौ ।।
टूटि गयौ सो पाँव धरत ही, सो जमुना में जात बहत ही ।।
ताही छिनु जो भई नभ बानी, भरि न सकौ तुम जमुना पानी ।।
हौ तुम सती सो ब्रज नें चीन्ही, तुम राधा की निंदा कीन्ही ।।
तुम्हरौ सब बल घटि गयौ तासौं, सेतु न पार करि सकौ यासौं।।
वैद्य- मैया, मैं और उपाय बताऊँ हूँ ब्रज में एक परम सती हैं, उनकी चरन-रज सौं बिस्व पावन होयगौ। उनहीं कूँ बुलाऔ। उनकौ नाम है श्रीराधा वे वृषभानुजी की पुत्री हैं।
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तीन बार जमुना पै इत-उत, बीच धार जल घट भरि लाई ।
जै हो जै हो सती राधिका! ब्रजबासिन सब धुनी लगाई ।।
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पुनि कह्यौ वैद, देवि! अपने कर नैनन सौं जल देहु छुबाई ।।
देखत नंद घरनि मन हुलसी, हरखि उठे तब कुँवर कन्हाई ।
तब जुबती अपराध छमायौ, कह्यौ कोउ राधा सम नाहीं।
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धनि माता, धनि पिता, धन्य ब्रज, धनि तो सी उपजाई प्यारी ।।
धन्य दिवस, धनि निसा तबहि की, धन्य घरी, धनि जाम ।
धन्य कान्ह तैरौ बड़भागी, धनि बस कीने स्याम ।
धनि मति, धनि गति, धनि तेरौ हित, धन्य भक्ति, धनि भाव ।
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