मंगलवार, 30 अगस्त 2016

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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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 🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹

🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ :
🌹 श्रीसाँझी-लीला :

( गत ब्लाग से आगे )

पद (राग पीलू, ताल अद्धा)

रहे दोउ बदन निहारि-निहारि ।
फूलनि बीनत सबै सखी उत, इत स्यामा सुकुमारि ।।
लता करनि में रहि गइँ इत-उत, कौन सकै निरवारि ।
नागरिया मिले नैन दुहुनि के, बड़े ठगनि ठगवारि ।।

(श्रीजी सखिन की ओर जायँ, ठाकुरजी लतान में छिपि जायँ)

सखी- प्यारी! हम सब तौ झोरी भरि-भरि कैं बौहौत फूल लाई हैं, परंतु आपकी झोरी में तौ थोरे से ही फूल दीखैं हैं, और आपकौ मुख हू उदास है। कहा बात है गई, कछू बताऔ तौ सही।

श्रीजी-

पद (राग-चैती, ताल धीमा तिताल)

फुलवा बीनन हौं गई री जमुना-कूल द्रुमन की भीर ।
अरुझयौ आय अरनि की डरियाँ तिहिं छिन री मेरौ अंचल चीर ।।
तब कोउ आय अचानक निकस्यौ मालति लता सघन मंझार ।
बिना कहें मेरौ पट सुरझायौ, इकटक मो तन रह्यौ निहारि ।।
पट सरुझाकर मन अरुझायौ, कहा कहूँ लज्जा की बात ।
हौं गुरुजन जर दबी जात री, इत वे सैननि हा-हा खात ।।
नाम न जानौं वाकौ, स्याम बरन हुतौ, पीत बरन बर हुतौ री दुकूल ।
वाहि बन लै चलि नागरिया फिरि बीनन साँझी के फूल ।।

सखी! मैं फूल बीनत-बीनत जमुना तट पै जाय पौहौंची। तहाँ अरनी की डार में मेरौ अंचल उरझि गयौ ।

सखी- तौ हम कौं क्यौं न बुलाय लीनी?

श्रीजी- अरी, मैंनें तुम सबन के नाम लै लै-कैं हेला दिए, परंतु काऊ नें नायँ सुनी।

सखी- तौ कौन नें सुरझायो?

श्रीजी- सखी! तब वा मालती कुंज में सौं लता हटामतौं भयौ मेरी ही दाईं एक बड़ोई सुकुमार निकसि कैंनें आयौ। वा बिना हीं कहें मेरौ अंचल सुरझाय दियौ और इकटक मेरी ओर देखिबे लग्यौ। वानें मेरौ वस्त्र तौ सुरझाय दियौ, परंतु मेरौ मन उरझाय लियौ। और तोसौं का कहूँ, कहिबे में लाज लगै है- सखी! मैं तो सकुच के मारैं दबी जाय रही और उतकूँ वह नैनन में हीं मेरी हाहा खाय रह्यौ।

( शेष आगे के ब्लाग में )

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 🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
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