शनिवार, 20 अगस्त 2016

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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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 🌹❄श्री राधाकृष्ण लीलामाधुर्य❄🌹

🌹 श्रीराधा कृष्ण की मधुर लीलाएँ :
🌹 श्रीसाँझी-लीला :

( गत ब्लाग से आगे )

प्रिये! जब-जब आप या बन में पधारौ हौ, तब ही तब यहाँ अद्भुत सी बात देखिबे में आवै है। या बन के फूल-फल, बेलि बीरूध आप के दरसन करत ही प्रफुल्लित है जायँ है। बृच्छन पै बैठे तोता, पपैया, कोकिलाएँ मधुर-मधुर सुर सौं बोलि कैं फूल झरावैं हैं, मानौं ये आपकी फूलन सौं सेवा करि रहे होयँ, और इन बृच्छन की डारैं फूलनि तथा फलनि के भार सौं झुकि कैं धरती कूँ छी रही हैं, मानौं ये बृच्छ अपनी डारी रूप हाथन में फल लैकैं आप के चरनन में भेट करि रहे होयँ। और ये मतवारे भौंरा कैसी मधुर गुंजार करि रहे हैं, मानौं या बन में आप के पधारिबे सों प्रसन्न होय हृदय की हुलास सौं आप के निर्मल जस कौ गान करि रहे होयँ।

श्रीजी- सखीयौ! अब तुम सब न्यारी-न्यारी भाँति के फूल लाऔ, और मैं इत माऊँ जमुना तट की कुंजन में सौं सुंदर फूल लाऊँ हूँ।

समाजी-

(दोहा)

हरषि फूल वीनत अली, डलिया काँख लगाय ।
नबल बाल बृषभानु की न्यारे चली सुभाय ।।
औचक पट अरुझयौ प्रिया, परसि कटीली डारि ।
कहँ ललिता चंपकलता, कहत पुकारि-पुकारि ।।
सघन मालती कुंज, तहँ ठाड़ी लली सुजान ।
नबल कुमार ब्रजराय कौं दई दिखाई आन ।।
नैननि सौं नैना मिले, इकटक रहे निहारि ।
इन अरुझी अँखियान कौं कौन सकै निरवारि ।।
तब नागर नँदलाल नें पट दीयौ सुरझाय ।
पै मन अरुझयौ दुहुँन कौ, घर कौं चल्यौ न जाय ।।

( शेष आगे के ब्लाग में )

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 🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
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